Jahangir National University- वामपंथ के खिलाफ़ लड़ाई का आगाज, जानें रिव्यू!



एमपी नाउ डेस्क



Jahangir National University Film Review: JNU- जाहंगीर नेशनल यूनिवर्सिटी सिनेमा घरों में दस्तक दे चुकी है, जैसा की फ़िल्म का नाम है तो दर्शकों को फिल्म में कौनसा विषय दिखाया जायेगा वह उसे नाम से ही समझ आ जाता है। 

फिल्म दिल्ली की एक विख्यात यूनिवर्सिटी में वर्षो से मीडिया और कुछ छात्रों के द्वारा लगाए गए कथित आरोपों जैसे, विश्विद्यालय में हिंदुदेवी देवताओं के अपमान, महिषासुर पूजा, भारत विरोधी नारें, लाल सलाम वामपंथी विचारधारा का बोलबाला, और अन्य विवादित घटनाओं को लेकर तैयार की गई है।

क्या है फ़िल्म की कहानी?

फ़िल्म जहाँगीर नेशनल यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने वाले एक छोटे शहर के युवा लड़के सौरभ शर्मा (सिद्धार्थ बोडके) की कहानी है जो इस विश्वविद्यालय का छात्र है। इस दौरान उसे जेएनयू में चल रहें, सभी वामपंथी मूवमेंट से परेशानी होती है क्योंकि वह जो विचारधारा या विषय लोगों के मन में भरा जा रहा है वह हिंदू धर्म का अपमान और देश विरोधी कार्य है।


जिसका वह नया छात्र खिलाफत करता है, उसको इस काम में सहारा मिलता है अखिलेश पाठक उर्फ बाबा (कुंज आनंद) जो यूनिवर्सिटी में वामपंथी वर्चस्व का विरोध करने में उसका पथ प्रदर्शन करता है, हालांकि वह खुद एक बड़ा शराबी बन चुका है क्योंकि वह खुद एक वामपंथी विचारधारा की लड़की के प्यार में पगलाया हुआ है। 

वही वामपंथी विचारधारा के विरोध के इस रास्ते पर सौरभ को ऋचा शर्मा (उर्वशी रौतेला) एक सहायक रूप में मिलती है। दोनों के बीच प्यार की पिपाणी भी बजाई गई है, कुल मिलाकर फिल्म न्यूज चैनलों और कथित आरोपों को लेकर एक बेहतरीन फिक्शन स्टोरी और ड्रामा के तौर में तैयार की गई है।

पॉलिटिकल ड्रामा मिलेगा भरपूर

फिल्म में पॉलिटिकल ड्रामा भरपूर देखने को मिलेगा, कुछ कहानियां ऐसी देखने को मिलेगी जो विश्वास करना थोडा मुश्किल है क्योंकि अब तक मेंने जहां शिक्षा प्राप्त की है वह ऐसा कुछ होता दिखाया नही गया है, जहा टीचर छात्रों का शोषण कर रहा है, जगह- जगह नग्नता फैली हो भाषा में अश्लिता और भी बहुत कुछ, पर कथित रूप से जिस विश्विद्यालय को लेकर यह फ़िल्म बनाई गई है, उसके ऊपर फिल्म में दिखाए गए यह सब आरोप लगते रहते है। 

फिल्म एक फिक्शन है तो कुछ कहानी लेखक की मन की होगी तो कुछ सत्य भी अब यह कहानी सही है या फिर मनगढ़त उसे जानने के लिए सिनेमा घरों की ओर आपकों कुच करना होगा।

फिल्म समीक्षा - हर्षित अग्रवाल 



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