Kingdom of the Planet of the Apes सिनेमा घरों में रिलीज़, एक अद्भुत दुनिया की काल्पनिक कहानी



एमपी नाउ डेस्क

Kingdom of the Planet of the Apes (फ़िल्म रिव्यू) : किंगडम ऑफ द प्लानेट ऑफ द एप्स (वानरों के ग्रह का साम्राज्य) प्लैनेट ऑफ द एप्स सीरीज का चौथी फिल्म है, इससे पूर्व में तीन और अन्य फिल्में राइज़ ऑफ़ द प्लैनेट ऑफ़ द एप्स (2011), डॉन ऑ

फ़ द प्लैनेट ऑफ़ द एप्स (2014), वॉर फ़ॉर द प्लैनेट ऑफ़ द एप्स (2017) में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो चुकी है।

प्लैनेट ऑफ द एप्स फेंचाइजी, अन्य फेंचाइजी फिल्मों जैसे ड्यून और अवतार जैसी हॉलीवुड फिल्मों से काफी अलग है। फिल्म के निर्देशक हो या लेखक फेंचाइजी फिल्मों की कहानी कैसे आगे बढ़ाई जाती है और दर्शकों के साथ जुड़ाव कैसे पैदा किया जा सकता है इसका बेहतरीन उदारण किंगडम ऑफ द प्लानेट ऑफ द एप्स है जो अपनी पिछली फ़िल्म वॉर फ़ॉर द प्लैनेट ऑफ़ द एप्स (2017) के 7 साल बाद भी दर्शकों को अपनी कहानी से जोड़े रखने में कामयाब रहती है।

10 मई 2024 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित प्लैनेट ऑफ द एप्स फेंचाइजी की फ़िल्म एक वानर कबीले के युवा नोवा ( चिपंजी) और उसके कबीले के अस्तित्व को लेकर लड़ाई के इर्द गिर्द कही गई कहानी है। 2 घंटे 25 मिनिट की यह फिल्म एक युवा वानर नोवा के ऊंची चोटी में पक्षियों के अंडे को घोंसले से चुराने को लेकर दिखाई गई बहादुरी से उसके कबीले को एक अन्य अत्याचारी सरदार प्रॉक्सिमस सीज़र (केविन डूरंड) की गुलामी से छुड़ाने की कहानी में ख़त्म होता दिखाया गया है।

वेस बॉल द्वारा निर्देशित फ़िल्म अपनी कहानी और इसके लेखक जोश फ्रीडमैन (Josh Friedman) की एक ऐसी दुनिया की काल्पनिक कहानी के लिए याद रखी जानी चाहिए जो एक राइटर को उसकी कल्पना को पर्दे में दिखाता है जहां बंदर बोल पा रहें है इंसानों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है उन्हे ज्ञान का अभाव है, वह भाषा ज्ञान भूल चुका है। बंदरो का कबीला समझदार है और वह और अधिक समझदार बनने की कोशिश में जुटा हुआ है। फिल्म का मुख्य विलेन इंसानों से नफ़रत करता है वह पूर्व में इंसानों की बनाई तकनीकी चीजों को छीन कर वानरों का सम्राज्य बनाना चाह रहा है।


इंसान लाचार है, उन्हे प्रताड़ना दी जा रही है। ऐसे में एक महिला किरदार जो गूंगी या मंदबुद्धि नहीं है। वह मॅई (फ़्रेया एलन) है जो नोआ को बताती है कि उसके कबीले को कैसे गुलामी से आजाद किया जा सकता है और वह इसमें अपने फ़ायदे को समाहित करना नही भूलती फिल्म में समझदार मनुष्य के अंदर होने वाले विश्वासघात, स्वार्थ, लालच और दोहरेपन पर टिप्पणियाँ जो मनुष्य करने में सक्षम हैं, उस सोच को भी दिखाया गया है। फिल्म दार्शनिक दृष्टि की ओर इंगित करने से भी नही चुकती।

फिल्म की कमज़ोरी 

फिल्म की कमज़ोरी फिल्म की हिन्दी डबिंग के संवाद को कहा जा सकता है, अन्य हॉलीवुड फिल्मों की अपेक्षा फिल्म में जो संवाद दिखाएं गए है उनमें निरशता दिखी। हालांकि फिल्म की कहानी यह हमें एक कल्पित, थोड़ा परिवर्तित वर्तमान में रखता है ताकि हम उस वास्तविक सर्वनाशकारी भविष्य को बेहतर ढंग से समझ सकें जो पूरी ताकत से हमारे सामने आ रहा है।


अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।

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