एमपी नाउ डेस्क
राजनीति।मध्यप्रदेश में इस वर्ष विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों शोरों से की जा रही है. जहां भाजपा अपनी सरकार को मध्यप्रदेश में यथावत रखनें के जुगत में लगी हुई है. वही कांग्रेस भी मध्यप्रदेश में सरकार बनाने और प्रदेश में अपने वनवास खत्म करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. दोनो ही दलों के नेता और कार्यकर्तों अपनी अपनी पार्टियों के प्रचार प्रसार में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाह रहे है. ऐसे में किसी भी पार्टी के नेता प्रचार प्रसार का हर वह साधन अपना रहे है. जो उन्हें अपने प्रतिद्वंदी से बेहतर दिखाने के लिए काम आ सके. कांग्रेस हो या भाजपा, मध्यप्रदेश चुनावों में मुद्दों से अलग हटकर जनता के बीच पहचान बनाने और अपनी पैठ जमाने विधानसभा चुनाव में टिकटों के दावेदारों ने एक बार फिर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सहारा लिया है। यह सभी दावेदार इन्हीं कार्यक्रमों के जरिए नैया पार लगाने की कोशिश में है। खास बात यह है कि अब कांग्रेस नेता भी इस तरह के आयोजनों में पीछे नहीं हैं। इसलिए क्या मंत्री या विधायक सब लगें हुए है अपनी अपनी छवि को चमकाने के लिए कभी लंबे काफिले में, तो कभी ऊंचे मंच पर, कभी मीडिया की सुर्खियों में, जो मंत्री और नेता जनता से दूर रहने को शान और पहचान समझते हैं, आजकल जनता के साथ जमीन पर बैठकर कथा, प्रवचन और भजन पर झूमते नजर आ रहे हैं।कुछ समय पहले भोपाल से नरेला विधानसभा से विधायक और मध्यप्रदेश सरकार में उच्च चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग द्वारा अपने माता पिता की स्मृति में नरेला विधानसभा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा का आयोजन हो या आगामी समय में छिंदवाड़ा में आयोजित होने वाली पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री के मुखारविंद से दिव्य कथा का आयोजन ऐसे ही प्रदेश के आधे से ज्यादा नेताओ ने अपने क्षेत्र में धार्मिक सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से अपनी राजनैतिक छवि चमकाने के लिए प्रचार का माध्यम चुना है.राजनीतिक पंडितों और प्रोफेशनल रूप से चुनावी प्रचार करने वाली कंपनियों और रणनीतिकारों का भी मानना यही है। रैली-समारोह की सशुल्क भीड़ से ज्यादा भीड़ धार्मिक कथा सांस्कृतिक आयोजनों में इकठ्ठी हो जाती है. मगर ये भीड़ वोट में तब्दील होने की गारंटी कम ही होती है.
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