एमपी नाउ डेस्क
◆ऑनलाइन पाठशाला- सत्रहवा दिन
छिंदवाड़ा । नाट्यगंगा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ऑनलाइन एक्टिंग की पाठशाला में देश के ख्यातिलब्ध कलाकारों का आना जारी है। कार्यशाला के सत्रहवे दिन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी, टीवी और फिल्म अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्र छिंदवाड़ा के कलाकारों से रूबरू हुए। आप पिछले 36 वर्षों से इप्टा मुंबई के साथ रंगकर्म कर रहे हैं। हम सबने इन्हें लगान, सरफरोश, गंगाजल, लीजेंड ऑफ भगतसिंह, रेडी, वीरगति, हलचल, अतिथि तुम कब जाओगे, दीवार, अपहरण, शूट आउट एट लोखंडवाला आदि आदि कई फिल्मों में देखा है। साथ ही चंद्रकांता, रामायण आदि कई टीवी सीरियल में भी आपने अभिनय किया है। रंगमंच एक आधयात्मिक यात्रा है इस विषय में बोलते हुए आपने कहा कि फलों का रसास्वादन करना है तो पेड़ों की जड़ो में पानी दीजिए, पत्तों में नहीं। आज सभी कलाकारों को अखिलेन्द्र मिश्र ने आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि वे जिस तरीके से सभी को सम्बोधित कर रहे थे ऐसा लग रहा था मानो वे वर्षों से परिचित हों। जब उनसे पूछा कि इतनी सकारात्मक ऊर्जा कहाँ से आई तो उन्हें कहा आध्यात्म से। एक रंगकर्मी को एक आध्यात्मिक व्यक्ति होना चाहिए जिससे वो अपने अंदर तथा बाहर के गुणों का भरपूर उपयोग कर सके एवं अपने अंदर की भरी हुई ऊर्जा को बाहर ला सके। श्री मिश्रा सर ने आज प्रकृति और रंगकर्मी का जो नाता है उसे बहुत ही सहज तरीके से परिभाषित किया उन्होंने बताया कि एक रंगकर्मी को सबसे पहले प्रकृति का साहित्य पढ़ना चाहिए, मानव प्रकृति का सबसे उत्कृष्ट साहित्य है और एक अभिनेता, रंगकर्मी ही उस साहित्य को पढ़ पाता है, समझ पाता है। रंगकर्म एक आध्यात्मिक यात्रा है और जब हम यह चाहते हैं कि रंगकर्म सही दिशा में फूले फले तो उसके लिए आवश्यक है कि हमें आध्यात्मिक तरीके से एक रंगकर्मी को तैयार करना होगा। इसके साथ ही मिश्रा सर ने साँसों के प्रकार, गुणों के प्रकार, दोषों के प्रकार तथा संस्कारों के प्रकार पर बहुत ही विस्तार से प्रकाश डाला। क्लास के अंत में सर ने सभी कलाकारों को जीवन का एक अमूल्य सन्देश दिया कि सूखी मिट्टी पर शब्द मत लिखो वो हवा आने पर उड़ जाएंगे यदि जीवन में कुछ करना चाहते हो या कोई मकाम हासिल करना चाहते हो तो पत्थर पर लिखने का काम करो अर्थात किसी भी काम को दृढ़ संकल्प लेकर करो तभी जीवन की ऊंचाइयों तक पहुँचा जा सकता है। इतने सफल कलाकार को सहज रूप से अपने बीच पाकर सभी सुखद आश्चर्य से भर गए। आज अतिथि के रूप में संजय तेनगुरिया जी, मनीष पतिंगे जी, निनाद जाधव जी, ब्रजेश अनय जी और विनोद विश्वकर्मा जी उपस्थित रहे। आज का संचालन सुमित गुप्ता और आभार दानिश अली ने व्यक्त किया। कार्यशाला के निर्देशक श्री पंकज सोनी, तकनीकि सहायक नीरज सैनी, मीडिया प्रभारी संजय औरंगाबादकर और मार्गदर्शक मंडल में श्री वसंत काशीकर, श्री जयंत देशमुख, श्री गिरिजा शंकर और श्री आनंद मिश्रा हैं। आज की मुख्य बातें-ध्यान आत्मा की एक्सरसाइज है। मनुष्य चौबिस घंटे प्रेम में रह सकता है पर गुस्से में नहीं। मनुष्य के शरीर से किस किस अंग से कौन कौन सी ध्वनि निकल सकती है। गुण, दोष और संस्कार कितने प्रकार के होते हैं इनका अभिनय में कैसे प्रयोग किया जाता है। एक कलाकार कैसे चरणबद्ध तरीके से अपनी आत्मा को जागृत कर सकता है।